विजय खन्ना कानून का स्नातक है और एक टेबलायड का संपादन करता है। आम चुनाव के समय प्रचार कर रही राजकुमारी सुनीता से वह प्रेम करने लगता है। सुनीता भी उसे प्रेम करती है। इसी चुनाव प्रचार के समय एक नेता की हत्या हो जाती है। इस हत्या के अपराध के लिए विजय खन्ना को दोषी ठहराने का प्रयास किया जाता है। अब विजय खन्ना और सुनीता को मिल कर हत्यारों और उनके षड़यंत्र का पर्दाफास करना है।
यह कथानक, २७ मार्च १९६४ को प्रदर्शित हिंदी फिल्म लीडर का है। इस फिल्म की कथा को हिंदी फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार ने लिखा था। उनकी कथा को पटकथा का रूप राम मुख़र्जी और हरीश मेहरा ने दिया था। फिल्म के संवाद हरीश के साथ वजाहत मिर्ज़ा ने लिखे थे। इस फिल्म का निर्देशन राम मुख़र्जी ने किया था।
निर्माता शशधर मुख़र्जी की फिल्म लीडर में, दिलीप कुमार ने विजय खन्ना और वैजयंतीमाला ने राजकुमारी सुनीता की भूमिका की थी। मोतीलाल ने आचार्य की भूमिका की थी, जिनकी हत्या के अपराध में विजय खन्ना को दोषी ठहराया जाता है। फिल्म में अन्य भूमिकाओं में डीके सप्रू, हीरालाल, जयंत, लीला मिश्रा और नज़ीर हुसैन थे। फिल्म में संगीत नौशाद ने दिया था तथा गीत शकील बदायुनी ने लिखे थे।
मुग़ल ए आज़म और गंगा जमुना जैसी बड़ी हिट फिल्म देने के बाद, लीडर जैसी औसत से भी कम व्यवसाय करने वाली लीडर दिलीप कुमार की बॉक्स ऑफिस अपील पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाती थी। यह एक प्रकार से, दिलीप कुमार के फिल्म जीवन के अवसान का एक संकेत भी थी। क्योंकि, इस फिल्म के बाद, दिलीप कुमार की फिल्म राम और श्याम ही बड़ी हिट फिल्मों में गिनी जाती है। इसके बाद, दिलीप कुमार की फिल्मे दर्शकों पर अपनी पकड़ खोती चली गई।
लीडर, पोलिटिकल थ्रिलर फिल्म थी। यह स्वातंत्रयोत्तर भारतीय सिनेमा की पहली राजनीतिक फिल्म थी। इससे पहले किसी भी निर्माता ने राजनीती को केंद्र में रख कर फिल्में नहीं बनाई थी। यहाँ तक कि स्वतंत्रता पूर्व भी निर्मित फिल्मों में परोक्ष रूप से अंग्रेज सरकार को निशाना बनाया गया था। लीडर तो राजनीती में अपराध का चित्रण करने वाली फिल्म थी।
लीडर के बाद, किसी अन्य निर्माता ने राजनीतिक फिल्म बनाने का प्रयास नहीं किया। लीडर के बाद, राजनीतिक रुझान वाली पहली फिल्म गुलजार की मेरे अपने थी। इस फिल्म के बाद, गुलजार ने फिल्म आंधी में इंदिरा गाँधी को अपने निशाने पर रखा था। मेरे अपने और आंधी के निर्माण के बाद, गुलजार ने कोई राजनीतिक रुझान वाली फिल्म नहीं बनाई।
लीडर तीन घंटा लम्बी फिल्म थी। इसलिए, यह फिल्म अपनी गति खो देती थी। दिलीप कुमार ने फिल्म की कहानी तो लिख दी थी। किन्तु, फिल्म के पटकथाकार अपना काम अच्छी तरह से नहीं कर पाए थे। इसलिए फिल्म अपनी पकड़ खो बैठी थी। फिल्म के निर्देशन में दिलीप कुमार का हस्तक्षेप भी फिल्म की सेहत के लिए अच्छा नहीं रहा। दिलीप कुमार को ऐसा लगता था कि निर्देशक राम मुख़र्जी अपना काम ठीक नहीं कर पा रहे है। यही कारन था कि फिल्म अपना प्रभाव खो बैठी।
फिल्म लीडर के निर्माण में ८५ लाख खर्च हुए थे। फिल्म को उस समय की उच्च तकनीक पर बनाया गया था। लीडर के निर्माण के दौरान शशधर मुख़र्जी ने जॉय मुख़र्जी और साधना के साथ फिल्म एक मुसाफिर एक हसीना का निर्माण भी किया था। एक मुसाफिर एक हसीना श्वेत श्याम फिल्म थी। जबकि, शशधर मुख़र्जी ने लीडर को उस समय की उच्च सिनेमा तकनीक टैक्नीकलर और सिनेमास्कोप में बनाया था। इसके बावजूद लीडर ने बॉक्स ऑफिस पर औसत से कम व्यवसाय किया।

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