क्या आम आदमी की सिल्वर स्क्रीन पर वापसी हो रही है ? क्या कम बजट से बनी छोटे सितारों वाली फिल्मों को बड़ी सफलता मिल रही है ? कभी, हृषिकेश मुख़र्जी, बासु चटर्जी, बासु भट्टाचार्य, गुलजार, आदि फिल्मकारों का ज़माना था। अब यह फिल्मकार नहीं हैं। लेकिन, कई देशी विदेशी स्टुडिओज और संस्थाएं हैं, जो हिंदी फिल्मों में पैसे लगा रहे हैं। सितारों के बजाय कहानी को भी बड़ा सितारा समझा जा रहा है। २०१७ में रिलीज़ आम आदमी पर, सितारा नहीं बने एक्टरों और कम बजट से बनी फिल्मों को मिली सफलता ने साबित कर दिया कि दर्शक अब सितारों की साधारण फिल्मों का मोहताज़ नहीं रहा । वह साधारण कहानियों में भी अपने सितारे ढूंढ लेता है।
बॉलीवुड के सितारे बने आम आदमी
यह कहना ज़रा मुश्किल है कि परदे पर आम आदमी की कहानी को जब सितारा अभिनेता या अभिनेत्री करते हैं तो वह ख़ास हो जाता है या आम आदमी पर फ़िल्में करके सितारा ख़ास बन जाता है। लेकिन, २०१७ में ऐसा हुआ है, जब सितारों ने रूपहले परदे पर आम आदमी को साकार करा और खुद के लिए प्रशंसा बटोरी। आम आदमी तो ख़ास हुआ ही। निर्देशक श्रीनारायण सिंह की फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा को बड़ी सफलता मिली थी। फिल्म के अपने गाँव में संडास लाने वाले केशव का किरदार अक्षय कुमार कर रहे थे। क्या अक्षय कुमार के कारण गांवों में आम औरतों की समस्या को प्रचार मिला या आम कथानक ने अक्षय कुमार को ख़ास बना दिया! अक्षय कुमार की ही फिल्म जॉली एलएलबी २ लखनऊ की पृष्ठभूमि पर कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील की थी। जो अन्याय से भिड़ जाता था। वरुण धवन अपनी फिल्म बद्री की दुल्हनिया में झाँसी के बद्री को हीरो बना देते हैं। हालाँकि, यह एक सामान्य प्रेम कथा थी। लेकिन, क्या झांसी के कथानक ने मेट्रो दर्शकों को भी आकर्षित नहीं किया था ! तुम्हारी सुलु की सुलोचना साबित करना चाहती है कि उसे मौका मिले तो वह भी कुछ कर सकती है। फिल्म में सुलोचना उर्फ़ सुलु के किरदार को विद्या बालन ने किया था।
छोटे शहरों के हीरो आयुष्मान खुराना और राजकुमार राव
कभी राजकपूर ने रूपहले परदे पर आम आदमी को जिया था। उनके बाद १९७० के दशक में अमोल पालेकर ने इस आम आदमी को खास बनाया। इस समय राजकुमार राव और आयुष्मान खुराना दो ऐसे अभिनेता हैं, जो परदे पर आम आदमी की आम सी कहानियां ख़ास बना रहे हैं। यह आम आदमी छोटे शहर का भी है और सिस्टम का एक अदना सिपाही होते हुए भी व्यवस्था के खिलाफ भी उठ खड़ा होता है। राजकुमार राव की फिल्म ट्रैप्ड का शौर्य अपनी गर्लफ्रेंड से शादी करने से पहले घर खरीदना चाहता है। उस खाली घर को देखने गया शौर्य पूरी एक रात घर में फंस जाता है। न्यूटन की कहानी एक पोलिंग पार्टी के साथ नक्सल इलाके में गए क्लर्क न्यूटन कुमार की कहानी है, जो नक्सलियों के भय से वोट देने नहीं आ रहे ग्रामीणों को घर से बाहर आने के लिए प्रेरित करता है। बहन होगी तेरी का शिवकुमार पड़ोस की लड़की से प्रेम करने के बावजूद बहन कहने को मज़बूर है क्योंकि छोटे शहर की मान्यता है कि पड़ोस की हर लड़की बहन होती है। बरेली की बर्फी और शादी में ज़रूर आना के प्रीतम और सत्येंद्र का चरित्र की अपनी चाहत और समस्याएं आम आदमी की बड़ी आम सी चाहते और समस्याएं है। बरेली की बर्फी में राजकुमार राव के साथ आयुष्मान खुराना भी थे। आयुष्मान खुराना ने अपनी पहली ही फिल्म दम लगा के हईशा से परदे पर आम आदमी को उतारना शुरू कर दिया था। आयुष्मान खुराना की २०१७ में रिलीज़ फिल्मों बरेली की बर्फी का चिराग, मेरी प्यारी बिंदु का अभिमन्यु रॉय और शुभ मंगल सावधान का मुदित शर्मा छोटे शहर, गांव या कसबे का आम आदमी है। उसको भी वही चीज़े परेशान करती हैं, जो एक भारतीय युवा को परेशान कर सकती है। यह दोनों अभिनेता अपने अभिनय की संजीदगी से किरदार को दर्शकों के दिलों के पास ले आते हैं।
एक आम महिला के ख़ास संघर्ष की कहानी
२०१७ में रिलीज़ स्वरा भास्कर की फिल्म अनारकली ऑफ़ आरा, तापसी पन्नू की नाम शबाना, सौंदर्य शर्मा की रांची डायरीज, ज़ायरा वसीम की सीक्रेट सुपरस्टार, कीर्ति कुल्हारी की इंदु सरकार, विद्या बालन की तुम्हारी सुलु और सुषमा देशपांडे की अज्जी की कहानियां सामान्य नारी की छोटी छोटी समस्या, आकांक्षाएं, संघर्ष और विजय पाने की हैं। अनारकली ऑफ़ आरा की फोक गायिका अनारकली को राजनीतिक लोगों के बदले का शिकार होना पड़ता है। वह संघर्ष कर खुद को निर्दोष साबित करती है। नाम शबाना की नायिका को मुसलमान होने के कारण लोग संदेह से देखते हैं। लेकिन, यही शबाना देश की सुरक्षा एजेंसी की मदद कर खुद को साबित करती हैं। रांची डायरीज की रांची की गुड्डी की इच्छा बड़ी पॉप गायिका बनने के लिए संघर्ष की है। सीक्रेट सुपर स्टार की वड़ोदरा की मुस्लिम किशोरी इंसिया भी पॉप गायिका बनने के लिए संघर्ष करके सफलता पाती है। इंदु सरकार एक आम महिला है। लेकिन, परिस्थितियां उसे शीर्ष सत्ता के खिलाफ खडी कर देती हैं। आम ग्रहणी सुलोचना करना तो बहुत कुछ चाहती है। लेकिन, पूरी तरह से नहीं कर पाती है। ऐसे ही वह रात की शिफ्ट में रेडियो जॉकी का काम करती है। मगर, कठिनाइयां उसे कदम खींचने को मज़बूर कर देती हैं। इसके बावजूद वह हार नहीं मानती। अज्जी कहानी एक बूढी औरत की है, जो बलात्कार की शिकार अपनी नातिन को इन्साफ दिलाने के लिए खतरों और धमकियों के बावजूद अपराधियों को दंड दिला पाने में सफल होती है। यह सभी फ़िल्में एक कमज़ोर और अबला औरत को ताक़तवर और सबल साबित करने वाली हैं।
माध्यम वर्ग की समस्या
भारतीय आबादी की अपनी सोच है और तदनुसार ही समस्या है। वह उनके लिए संघर्ष करता है। कभी सफल होता है, कभी सफल होता है। लेकिन, फिर उठ खड़ा होता है। फिल्म हाफ गर्लफ्रेंड का अर्जुन कपूर का बिहारी किरदार माधव झा इंग्लिश नहीं जानता, जबकि वह जिस लड़की से प्रेम करता है वह अंग्रेजी बोलती है। अंग्रेजी न जानना जैसी समस्या छोटे शहर के हर युवा की समस्या है। इग्लिश मीडियम, माध्यम वर्ग की अपने बच्चे को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाने की ज़द्दोज़हद का चित्रण करती है। फिल्म में एक बच्चे के माँ पिता की भूमिका पाकिस्तान की एक्ट्रेस सबा कमर और इरफ़ान खान ने क्या खूब की थी। रिबन के कल्कि कोएच्लिन और सुमित व्यास के चरित्र अपने बच्चे की ख़ुशी से जितना खुश हैं, उतना ही आशंकित है भविष्य को लेकर कि नौकरी और बच्चे की परवरिश साथ कैसे चलेगी। लखनऊ सेंट्रल में जेल में बंद कैदी अपना बैंड बना पाने में सफल होते हैं। क़रीब क़रीब सिंगल के योगी और जया दो ध्रुव की तरह है। इसके बावजूद वह एक ऑनलाइन डेटिंग एप्प के कारण मिलते हैं। उनमे झड़प होती है। उनके बीच के मतभेद ऋषिकेश यात्रा के दौरान ज़्यादा बढ़ जाते हैं। कड़वी हवा में आम आदमी भी प्रदूषण से परेशान है। पंचलैट के गाँव वाले बिजली की समस्या से जूझ रहे हैं। यह सभी फ़िल्में रियल लाइफ समस्याओं का चित्रण करने वाली फ़िल्में हैं।
२०१७ में रिलीज़ यह सभी फ़िल्में ऐसी समस्याओं का चित्रण करती है, जो हर ख़ास और आम की है। आम आदमी की यह समस्याएं किसी न किसी कारण से बढती चली जाती हैं। इनका निदान उसे ही करना है। ऐसी फिल्मों को ख़ास व्यक्तित्व वाले एक्टर सपोर्ट करते ही हैं, फिल्म निर्माता और निर्देशक भी रूचि दिखाते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि दर्शक कथ्य और अभिनय वाली इन चुस्त फिल्मों को पसंद भी करते हैं। यही कारण है कि आम आदमी द्वारा आम आदमी की इन फिल्मों को आम आदमियों ने भी खूब पसंद किया और देखा। हिंदी सिनेमा के लिहाज़ से सुखद संकेत है।
बॉलीवुड के सितारे बने आम आदमी
यह कहना ज़रा मुश्किल है कि परदे पर आम आदमी की कहानी को जब सितारा अभिनेता या अभिनेत्री करते हैं तो वह ख़ास हो जाता है या आम आदमी पर फ़िल्में करके सितारा ख़ास बन जाता है। लेकिन, २०१७ में ऐसा हुआ है, जब सितारों ने रूपहले परदे पर आम आदमी को साकार करा और खुद के लिए प्रशंसा बटोरी। आम आदमी तो ख़ास हुआ ही। निर्देशक श्रीनारायण सिंह की फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा को बड़ी सफलता मिली थी। फिल्म के अपने गाँव में संडास लाने वाले केशव का किरदार अक्षय कुमार कर रहे थे। क्या अक्षय कुमार के कारण गांवों में आम औरतों की समस्या को प्रचार मिला या आम कथानक ने अक्षय कुमार को ख़ास बना दिया! अक्षय कुमार की ही फिल्म जॉली एलएलबी २ लखनऊ की पृष्ठभूमि पर कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील की थी। जो अन्याय से भिड़ जाता था। वरुण धवन अपनी फिल्म बद्री की दुल्हनिया में झाँसी के बद्री को हीरो बना देते हैं। हालाँकि, यह एक सामान्य प्रेम कथा थी। लेकिन, क्या झांसी के कथानक ने मेट्रो दर्शकों को भी आकर्षित नहीं किया था ! तुम्हारी सुलु की सुलोचना साबित करना चाहती है कि उसे मौका मिले तो वह भी कुछ कर सकती है। फिल्म में सुलोचना उर्फ़ सुलु के किरदार को विद्या बालन ने किया था।
छोटे शहरों के हीरो आयुष्मान खुराना और राजकुमार राव
कभी राजकपूर ने रूपहले परदे पर आम आदमी को जिया था। उनके बाद १९७० के दशक में अमोल पालेकर ने इस आम आदमी को खास बनाया। इस समय राजकुमार राव और आयुष्मान खुराना दो ऐसे अभिनेता हैं, जो परदे पर आम आदमी की आम सी कहानियां ख़ास बना रहे हैं। यह आम आदमी छोटे शहर का भी है और सिस्टम का एक अदना सिपाही होते हुए भी व्यवस्था के खिलाफ भी उठ खड़ा होता है। राजकुमार राव की फिल्म ट्रैप्ड का शौर्य अपनी गर्लफ्रेंड से शादी करने से पहले घर खरीदना चाहता है। उस खाली घर को देखने गया शौर्य पूरी एक रात घर में फंस जाता है। न्यूटन की कहानी एक पोलिंग पार्टी के साथ नक्सल इलाके में गए क्लर्क न्यूटन कुमार की कहानी है, जो नक्सलियों के भय से वोट देने नहीं आ रहे ग्रामीणों को घर से बाहर आने के लिए प्रेरित करता है। बहन होगी तेरी का शिवकुमार पड़ोस की लड़की से प्रेम करने के बावजूद बहन कहने को मज़बूर है क्योंकि छोटे शहर की मान्यता है कि पड़ोस की हर लड़की बहन होती है। बरेली की बर्फी और शादी में ज़रूर आना के प्रीतम और सत्येंद्र का चरित्र की अपनी चाहत और समस्याएं आम आदमी की बड़ी आम सी चाहते और समस्याएं है। बरेली की बर्फी में राजकुमार राव के साथ आयुष्मान खुराना भी थे। आयुष्मान खुराना ने अपनी पहली ही फिल्म दम लगा के हईशा से परदे पर आम आदमी को उतारना शुरू कर दिया था। आयुष्मान खुराना की २०१७ में रिलीज़ फिल्मों बरेली की बर्फी का चिराग, मेरी प्यारी बिंदु का अभिमन्यु रॉय और शुभ मंगल सावधान का मुदित शर्मा छोटे शहर, गांव या कसबे का आम आदमी है। उसको भी वही चीज़े परेशान करती हैं, जो एक भारतीय युवा को परेशान कर सकती है। यह दोनों अभिनेता अपने अभिनय की संजीदगी से किरदार को दर्शकों के दिलों के पास ले आते हैं।
एक आम महिला के ख़ास संघर्ष की कहानी
२०१७ में रिलीज़ स्वरा भास्कर की फिल्म अनारकली ऑफ़ आरा, तापसी पन्नू की नाम शबाना, सौंदर्य शर्मा की रांची डायरीज, ज़ायरा वसीम की सीक्रेट सुपरस्टार, कीर्ति कुल्हारी की इंदु सरकार, विद्या बालन की तुम्हारी सुलु और सुषमा देशपांडे की अज्जी की कहानियां सामान्य नारी की छोटी छोटी समस्या, आकांक्षाएं, संघर्ष और विजय पाने की हैं। अनारकली ऑफ़ आरा की फोक गायिका अनारकली को राजनीतिक लोगों के बदले का शिकार होना पड़ता है। वह संघर्ष कर खुद को निर्दोष साबित करती है। नाम शबाना की नायिका को मुसलमान होने के कारण लोग संदेह से देखते हैं। लेकिन, यही शबाना देश की सुरक्षा एजेंसी की मदद कर खुद को साबित करती हैं। रांची डायरीज की रांची की गुड्डी की इच्छा बड़ी पॉप गायिका बनने के लिए संघर्ष की है। सीक्रेट सुपर स्टार की वड़ोदरा की मुस्लिम किशोरी इंसिया भी पॉप गायिका बनने के लिए संघर्ष करके सफलता पाती है। इंदु सरकार एक आम महिला है। लेकिन, परिस्थितियां उसे शीर्ष सत्ता के खिलाफ खडी कर देती हैं। आम ग्रहणी सुलोचना करना तो बहुत कुछ चाहती है। लेकिन, पूरी तरह से नहीं कर पाती है। ऐसे ही वह रात की शिफ्ट में रेडियो जॉकी का काम करती है। मगर, कठिनाइयां उसे कदम खींचने को मज़बूर कर देती हैं। इसके बावजूद वह हार नहीं मानती। अज्जी कहानी एक बूढी औरत की है, जो बलात्कार की शिकार अपनी नातिन को इन्साफ दिलाने के लिए खतरों और धमकियों के बावजूद अपराधियों को दंड दिला पाने में सफल होती है। यह सभी फ़िल्में एक कमज़ोर और अबला औरत को ताक़तवर और सबल साबित करने वाली हैं।
माध्यम वर्ग की समस्या
भारतीय आबादी की अपनी सोच है और तदनुसार ही समस्या है। वह उनके लिए संघर्ष करता है। कभी सफल होता है, कभी सफल होता है। लेकिन, फिर उठ खड़ा होता है। फिल्म हाफ गर्लफ्रेंड का अर्जुन कपूर का बिहारी किरदार माधव झा इंग्लिश नहीं जानता, जबकि वह जिस लड़की से प्रेम करता है वह अंग्रेजी बोलती है। अंग्रेजी न जानना जैसी समस्या छोटे शहर के हर युवा की समस्या है। इग्लिश मीडियम, माध्यम वर्ग की अपने बच्चे को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाने की ज़द्दोज़हद का चित्रण करती है। फिल्म में एक बच्चे के माँ पिता की भूमिका पाकिस्तान की एक्ट्रेस सबा कमर और इरफ़ान खान ने क्या खूब की थी। रिबन के कल्कि कोएच्लिन और सुमित व्यास के चरित्र अपने बच्चे की ख़ुशी से जितना खुश हैं, उतना ही आशंकित है भविष्य को लेकर कि नौकरी और बच्चे की परवरिश साथ कैसे चलेगी। लखनऊ सेंट्रल में जेल में बंद कैदी अपना बैंड बना पाने में सफल होते हैं। क़रीब क़रीब सिंगल के योगी और जया दो ध्रुव की तरह है। इसके बावजूद वह एक ऑनलाइन डेटिंग एप्प के कारण मिलते हैं। उनमे झड़प होती है। उनके बीच के मतभेद ऋषिकेश यात्रा के दौरान ज़्यादा बढ़ जाते हैं। कड़वी हवा में आम आदमी भी प्रदूषण से परेशान है। पंचलैट के गाँव वाले बिजली की समस्या से जूझ रहे हैं। यह सभी फ़िल्में रियल लाइफ समस्याओं का चित्रण करने वाली फ़िल्में हैं।
२०१७ में रिलीज़ यह सभी फ़िल्में ऐसी समस्याओं का चित्रण करती है, जो हर ख़ास और आम की है। आम आदमी की यह समस्याएं किसी न किसी कारण से बढती चली जाती हैं। इनका निदान उसे ही करना है। ऐसी फिल्मों को ख़ास व्यक्तित्व वाले एक्टर सपोर्ट करते ही हैं, फिल्म निर्माता और निर्देशक भी रूचि दिखाते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि दर्शक कथ्य और अभिनय वाली इन चुस्त फिल्मों को पसंद भी करते हैं। यही कारण है कि आम आदमी द्वारा आम आदमी की इन फिल्मों को आम आदमियों ने भी खूब पसंद किया और देखा। हिंदी सिनेमा के लिहाज़ से सुखद संकेत है।
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