रोशनी के झिलमिल आँगन में, खुद को चाँद कहूँ या तारा ! |
आइना बतायेगा कि कौन हूँ मैं- लक्ष्मी या गृहलक्ष्मी !
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मेरे हुस्न का नशा जियादा चढ़ेगा तुम पर, मुझ पर दिवाली का नशा जो चढ़ा है |
एफेल टावर पर चढ़ कर दीप सा झिलमिलाना चाहूँ- अदा की यही तो अदा है ! |
दीवाली का नशा अभी चढ़ना बाकी है, बोतल का है कि कम्बख्त उतरा नहीं। |
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