संजू को, अभिनेता संजय दत्त की बायोपिक समझाने की
गलती क्यों की जा रही है? यह तो राजकुमार हिरानी और निर्माता विधु
विनोद चोपड़ा का प्रचार का एक तरीका है. यह फिल्म कहीं से भी संजय दत्त की फिल्म
नहीं है, सिवाय मुख्य किरदार का चेहरा काफी कुछ संजय दत्त से मिलने के.
इस फिल्म को ध्यान से देखिये और राजकुमार हिरानी की पहले की फिल्मों को
याद कीजिये.
१- वही दोस्ती का फार्मूला यहाँ भी है.
२- हिरानी की छींटाकसी यहाँ भी जारी है. इस बार उन्होंने मीडिया को निशाना
बनाया है.
३- हिन्दू विरोध भी कायम है. बाबरी ढांचे को साफ़ साफ़ बाबरी मस्जिद कहा है.
४- हास्य से भरपूर संवाद है.
अन्यथा, एक नशेडी एक्टर के किरदार में ऐसा कुछ डालने की गुंजाईश ही नहीं थी.
हम लोग बचपन से ही पढ़ते आये थे कि सांसद सुनील दत्त और तत्कालीन
प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की अच्छी दोस्त नर्गिस के नशेडी बेटे संजय दत्त
ने अपने घर की छत पर खड़े होकर अपनी गन से धडाधड फायर करने शुरू कर दिए. वह नशे में
डूबा रहाता था, अंडरवर्ल्ड से उसके सम्बन्ध थे. इन्ही
संबंधों के कारण उसके घर में एके ५६ पहुंचाई गई. बाद वापस ले जाई गई. सुनील दत्त
के घर से विस्फोटक भरा ट्रक खडा होने की खबर भी थी उस समय. नर्गिस अपने इकलौते
बेटे की इस गन्दी हरकतों से परेशान रहती थी. उसे नर्गिस और सुनील दत्त का बेटा
होने के कारण ही टाडा के आरोपों से छूट मिली. कांग्रेस के इशारे में सीबीआइ ने
संजय दत्त के कब्ज़े से एके ५६ बरामद होने का क्लॉज़ हटा लिया. अन्यथा इस एक्टर को
तमाम अभियुक्तों की तरह फांसी हो सकती थी.
इस फिल्म में, देखने लायक जो कुछ है,
वह है रणबीर कपूर और विक्की कौशल का ज़बरदस्त अभिनय. रणबीर तो बिलकुल छा
गये. पूरी कूड़ा फिल्म को उन्होंने ३०० करोड़ की फिल्म बना दिया. यह फिल्म दूसरा
हफ्ता ख़त्म होते होते ३०० करोड़ कमा लेगी.
राजकुमार हिरानी ने आजकल अखबारों और चैनलों द्वारा की जा रही मूर्खतापूर्ण
और पेड न्यूज़ की हरकतों का भरपूर फायदा उठाते हुए, मीडिया को
संजय दत्त के विरुद्ध दिखा दिया और दर्शक सहज मान भी गए.
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