तुषार कपूर की फिल्म गायब, सलमान खान की फिल्म रेडी और श्रीदेवी की
वापसी फिल्म मॉम के लेखक कोना वेंकट ने एक कहानी लिखने के बाद तय किया कि वह इसे
क्रॉसओवर फिल्म बनाएंगे।निर्माता कोना वेंकट की लिखी इस फिल्म का टाइटल साइलेंस
रखा गया है। दक्षिण की भाषाओँ में साइलेंस को निशब्दम टाइटल दिया गया है। इस फिल्म से अनुष्का शेट्टी और आर माधवन पहली
बार जोड़ीदार हैं। हॉरर थ्रिलर साइलेंस का निर्देशन हेमंत मधुकर करेंगे। क्रॉसओवर
फिल्म साइलेंस में हॉलीवुड के एक्टर माइकल मेडसन की भूमिका केंद्रीय है। यह
क्रॉसओवर फिल्म पांच भाषाओँ तमिल, तेलुगु, मलयालम, इंग्लिश और हिंदी में बनाई जा रही है। वहीँ
काजल अगरवाल भी इंटरनेशनल होने जा रही हैं। उन्होंने जेफरी गी चिन के द्वारा
निर्देशित की जाने वाली फिल्म साइन कर ली है। जेफरी ने पुरस्कार प्राप्त लघु फिल्म
लिटिल टोक्यो रिपोर्टर का निर्देशन किया है। काजल अग्रवाल की पहली वास्तविक
घटनाक्रम पर एक जोड़े की है,
जिनकी ज़िंदगी में एक घटना के बाद, भारी बदलाव हो जाता है। फिल्म के तेलुगु
संस्करण में काजल के नायक विष्णु मांचू हैं। निर्माताओं को हिंदी और इंग्लिश वर्शन
के लिए अभिनेता की तलाश है।
बॉलीवुड की शुरुआत काइट्स
दक्षिण की तरह,
हिंदी फिल्म उद्योग बॉलीवुड ने भी क्रॉसओवर फ़िल्में बनाने के प्रयास किये
हैं। २०१० में,
निर्माता राकेश रोशन ने अपनी फिल्म काइट्स के निर्देशन की कमान अनुराग
बासु को सौंपी थी। अनुराग बासु, उस समय तक मर्डर, गैंगस्टर और लाइफ इन अ मेट्रो जैसी फिल्मों
से मशहूर हो चुके थे। काइट्स अपनी प्रेमिका की तलाश में और पुलिस से भाग रहे युवक
जय रे की कहानी थी,
जो मेक्सिको के रेगिस्तान में भटक रहा है। इस फिल्म की नायिका मैक्सिको
सुंदरी बारबरा मोरी,
बॉलीवुड अभिनेता हृथिक रोशन का प्यार थी।
कंगना रनौत इसमें ट्रायंगल बनाने की कोशिश में थी। फिल्म की तमाम शूटिंग
मेक्सिको में हुई थी। हिंदी और इंग्लिश
में बनाई गई काइट्स के इंग्लिश संस्करण को
ब्रेट रैटनर ने एडिट किया था। लेकिन, विदेशी दर्शकों के लिए काइट्स द रीमिक्स
बुरी तरह से असफल हुई थी।
कैसी होनी चाहिए क्रॉसओवर फिल्म
हालाँकि,
फिल्म के निर्माता राकेश रोशन इसे सही मायनों में क्रॉसओवर फिल्म मानते
हैं। लेकिन, यह वास्तव
में क्रॉसओवर फिल्मों की परिभाषा पर खरी नहीं उतरती थी। एस एस राजामौली के लिए
बाहुबली और सलमान खान के लिए बजरंगी भाईजान जैसी अपीलिंग फ़िल्में लिखने वाले केवी
राजेंद्र प्रसाद कहते हैं,
"क्रॉसओवर फिल्मों में संवेगों और
दृश्यों का श्रेष्ठ संतुलन होना चाहिए। ऐसी फिल्म सही कथानक के साथ समुचित संवेगों
का मिश्रण होनी चाहिए। इस फिल्मों का परदे पर दृश्य प्रभाव ऐसा होना चाहिए ताकि
विदेशी दर्शक तक सिनेमाघरों तक पहुंचे।" काइट्स मापदंडों पर खरी नहीं उतरती थी। इस फिल्म की
कहानी बेहद साधारण और बॉलीवुड के दर्शकों के लिहाज़ से भी घिसीपिटी थी और पटकथा
उतनी ही लचर। कुछ ऐसी दुर्दशा, विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ब्रोकन हॉर्सेज की भी
हुई। यह फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर (२००८)
की सफलता के बाद,
दुनिया के दर्शकों को लुभाने के
ख्याल से बनाई गई थी। मगर इस फिल्म का हाल भी काइट्स वाला हुआ। यह फिल्म, मेक्सिको और
अमेरिका की सरहद पर फलफूल रहे माफिया दलों और उनके टकराव की कहानी थी। फिल्म में
कोई भी हिंदुस्तानी चेहरा नहीं था। इन सब कारणों से ब्रोकन हॉर्सेज असफल हो गई। इस
लिहाज़ से, करण जौहर के
निर्देशन में बनी शाहरुख़ खान की फिल्म माय नेम इज़ खान को क्रॉसओवर फिल्म कहा जा
सकता है, जिसमे ११
सितम्बर को अमेरिका पर आतंकी हमले के बाद मुसलमानों को आतंकी समझे जाने का मामला
उठाया गया था. फिल्म मे कमज़ोर दिमाग वाले रिज़वान खान (शाहरुख़ खान) के माध्यम से
बताने की कोशिश की गई थी कि हर खान आतंकवादी नहीं होता। इस फिल्म को विदेशो में
अच्छी सफलता मिली थी।
आठ दशक लम्बा सफ़र
कोई ८२ साल पहले,
किसी भारतीय एक्टर वाली क्रॉसओवर फिल्मों का सिलसिला ८ फरवरी १९३७ को
रिलीज़ ब्रिटिश फिल्म एलीफैंट बॉय से हुआ था। इस फिल्म के पहले भारतीय क्रॉसओवर
एक्टर साबू दस्तगीर महावत के बेटे की भूमिका में थे। मैसूर मे जन्मे साबू एक महावत
के बेटे थे। उन्हें इस फिल्म से काफी लोकप्रियता मिली। लेकिन, २५ दिसम्बर
१९४० को रिलीज़ हॉलीवुड फिल्म द थीफ ऑफ़ बग़दाद को ही सही मायनों में क्रॉसओवर फिल्म
माना जाता है।
क्रॉसओवर फिल्मों के कलाकार
भारतीय फिल्म कलाकारों के हॉलीवुड की क्रॉसओवर फ़िल्में करने के आठ दशक
लम्बे सफर में साबू दस्तगीर ने जो पहला कदम रखा था, उस पर आज तक कई अभिनेता चल चुके हैं। ऐसे
कुछ कलाकारों के बारे में जानना दिलचस्प होगा।
साबू - महावत का बेटा
मैसूर के साबू दस्तगीर ने अपने २७ साल लम्बे फिल्म करियर में लगभग २३
फ़िल्में की। वह हॉलीवुड फिल्मों के जाने-पहचाने भारतीय चेहरे थे। उनकी ज़्यादातर
फ़िल्में जंगल पर आधारित थी। उन्होंने
फिल्म द जंगल बुक में मोगली की भूमिका की थी। यह विडम्बना ही है कि किसी भी भारतीय
फिल्म निर्माता ने साबू दस्तगीर की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का फायदा उठाने के
लिए कोई भी फिल्म नहीं बनाई।
बॉलीवुड के जीनियस आइएस जौहर
साबू के बाद,
क्रॉसओवर भारतीय एक्टर के रूप में बॉलीवुड के जीनियस एक्टर माने जाने वाले
आइएस जौहर का नाम लिया जाता है। उन्होंने बॉलीवुड में अपनी सफलता के दौर में हैरी
ब्लैक एंड द टाइगर और फ्लेम ओवर इंडिया जैसी क्रॉसओवर फ़िल्में स्टीवर्ट ग्रेंजर, लॉरेन बकल
और हर्बर्ट लोम के साथ की। लॉरेंस ऑफ़ अरबिया और माया उनकी दूसरी मशहूर क्रॉसओवर
फ़िल्में थी।
सिमी : पहली क्रॉसओवर फिल्म एक्ट्रेस
सिमी को,
भारत की पहली क्रॉसओवर फिल्म एक्ट्रेस कहा जाना चाहिए। उन्होंने अभिनेता
फिरोज खान के साथ जॉन गुइलर्मिन की फिल्म टार्ज़न गोज टू इंडिया (१९६२) में अभिनय
किया था। इस फिल्म में फिरोज खान एक राजकुमार की भूमिका में थे और जैक महोनी
टार्ज़न बने थे। फिल्म में मुराद, जगदीश राज, आदि कई दूसरे भारतीय एक्टर भी थे।
क्रॉसओवर फिल्मों के शशि कपूर
स्वर्गीय अभिनेता शशि कपूर, मुख्य धारा की फिल्मों के इकलौते सुपरस्टार
थे, जिन्होंने सबसे ज्यादा हॉलीवुड फिल्मों के काम किया है। उन्हें उनकी क्रॉसओवर
फिल्मों के कारण दुनिया में पहचाना जाता था। कपूर की क्रॉसओवर फिल्मों की शुरुआत फिल्म
निर्माता इस्माइल मर्चेंट, निर्देशक जेम्स आइवरी और लेखिका रुथ प्रवर झाबवाला के
कारण संभव हुई। शशि कपूर, जिस दौरान बॉलीवुड की मुख्य धारा की फिल्मों में धूम मचा
रहे थे, उसी दौरान १९६३ में उन्हें इस्माइल मर्चेंट और जेम्स आइवरी की फिल्म द
हाउसहोल्डर में अभिनय का मौका मिला। इस पहली फिल्म ने, शशि कपूर को अंतर्राष्ट्रीय
पहचान दे दी। इसके बाद तो वह शेक्सपियर वाला, अ मैटर ऑफ़ इनोसेंस, बॉम्बे टॉकी,
सिद्धार्थ और हीट एंड डस्ट जैसी फिल्मों से क्रॉसओवर फिल्मों के स्टार बन गए।
इरफ़ान खान की बड़ी सफलता
आज की पीढ़ी के अभिनेताओं में, इरफ़ान खान जितने बॉलीवुड में सफल हैं, उतने
ही हॉलीवुड की फिल्मों में भी सफल है। उनकी अंतर्राष्ट्रीय उड़ान २००१ में फिल्म द
वारियर से हुई थी। वह अब तक नेमसेक, द दार्जीलिंग लिमिटेड, स्लमडॉग मिलियनेयर,
न्यू यॉर्क, आई लव यू, द अमेजिंग स्पाइडर-मैन, लाइफ ऑफ़ पाई, जुरैसिक वर्ल्ड और
इन्फर्नो चर्चित और बड़ी फ़िल्में कर चुके हैं।
क्रॉसओवर फिल्मों से रोशन सेठ, सईद मिर्ज़ा तथा अन्य
टीवी फिल्म और सीरीज करने के बाद, रोशन सेठ के करियर की पहली फिल्म क्रॉसओवर
जगरनॉट थी। रोशन सेठ को इस फिल्म में अन्थोनी हॉपकिंस, ओमर शरीफ, रिचर्ड
हैरिस जैसे दिग्गज अभिनेताओं के साथ अभिनय करने का मौका मिला था। वह रिचर्ड
एटेनबरो की फिल्म गाँधी के नेहरू के तौर पर मशहूर हुए। क्रॉसओवर फिल्म द गुरु के
सईद जाफ़री को फिल्म द मैन हु वुड बी किंग में जेम्स बांड किरदार करने वाले सीन
कोंनेरी, माइकल केन, क्रिस्टोफर
प्लमर जैसे सितारों के साथ अभिनय का मौक़ा मिला। लेकिन, उन्हें भारत
में पहचान सत्यजीत रे की फिल्म शतरंज के खिलाडी के मिर्ज़ा की भूमिका में। शबाना अजमी की आजकल चर्चित हो
रही क्रॉसओवर फिल्म शीर कोरमा समलैंगिक समुदाय पर केन्द्रित है। ओमपुरी, नसीरुद्दीन
शाह, अनुपम खेर, आदि ने अपनी क्रॉसओवर फिल्मों के ज़रिये काफी नाम कमाया है।
ज़रूरत हैं क्रॉसओवर फ़िल्में
इसमे कोई शक नहीं कि बॉलीवुड फिल्मों का बाज़ार काफी बड़ा है। पडोसी
श्रीलंका, पाकिस्तान
और अफगानिस्तान के अलावा इंडोनेशिया सहित एशिया के काफी देशों में बॉलीवुड की
फिल्मों का बड़ा बाज़ार है। पश्चिम देशों और ऑस्ट्रेलियाई और अमेरिका महाद्वीप के देशों में भी
हिंदी फिल्मों को देखा जाता है। यहाँ के भारतीयों ने मिली-जुली संस्कृति अपना रखी
है। इनकी विचारधारा पर इन देशों का काफी प्रभाव है। इन देशों के मूल निवासी भी
भारतीयों से प्रभावित होते रहते हैं। वह भी हिंदी फ़िल्में देखते रहते हैं। इसलिए, ऎसी फ़िल्में बनाये जाने की ज़रुरत हो, जिनमे कहानी
उन देशों में रहने वाले भारतीयों और गैर भारतीयों को भी प्रभावित कर सके। दिल वाले
दुल्हनिया ले जायेगे और परदेस जैसी फिल्मों का विषय सार्वभौमिक था। यही कारण है कि
इन फिल्मों के ज़रिये शाहरुख़ खान, विदेशों में अपने बड़ी संख्या में प्रशंसक बना पाने
में सफल रहे। जब,
बॉलीवुड के फिल्म निर्माता भी इसी सोच के साथ फिल्मों की कहानियाँ चुनेंगे
तो विदेशी बाज़ार हथियाने में कामयाबी मिलेगी ही। हॉलीवुड ने तो इस दिशा में बड़ी
तेज़ी से सोचना शुरू कर रखा है।
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