Tuesday 16 July 2019

ढाई अक्षरों वाला शब्द नहीं है सेक्स : Shilpi Dasgupta


 

हमारे समाज में लोग सेक्स पर खुलकर बात नहीं करते है, लेकिन हम सब इस बात को समझते हैं और मानते हैं कि अगर ऐसा हो तो हमारा समाज एक स्वस्थ समाज होगा। ख़ानदानी शफाक़ाना एक हँसी-मज़ाक वाली, लेकिन सामाज से जुड़ी हक़ीक़त पर आधारित फिल्म के रूप में इस मुद्दे को उठाती है।

एक छोटे से शहर से आयी एक पंजाबी लड़की की कहानी का सिलसिला बयान करती हुई फ़िल्म, जिसे हालात एक सेक्स क्लिनिक चलाने के लिए मजबूर कर देते हैं। यह फिल्म एक ऐसे विषय का रास्ता खोलती है जिसके बारे में शायद ही कभी बात की जाती है। सोनाक्षी सिन्हा और निर्देशक, शिल्पी दासगुप्ता द्वारा बड़ों के बीच भी सेक्स के बारे में चर्चा करने के टैबू और शर्म को सबके सामने लाकर एक दिलेर क़दम उठाया है।

इस फिल्म के निर्माताओं को लगता है कि सेक्स से जुड़ी बहुत सारी परेशानियों को आसानी से दूर किया जा सकता है अगर हम बस उनके बारे में बात करते हैं तो... बात तो करो! निर्देशिका शिल्पी दासगुप्ता कहती हैं, “क्या आप जानते हैं कि कुछ वक़्त पहले तक भारत के कुछ राज्यों में यौन शिक्षा प्रतिबंधित की गयी थी? यह एक ऐसा मुद्दा है जिसके लिए हमें अभियान चलाना चाहिए।

इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभा रही, सोनाक्षी सिन्हा भी इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखती हैं। "मैंने इस फ़िल्म को करने का फैसला किया क्योंकि यह हम सबसे जुड़ा हुआ एक बहुत ही और अहम विषय है जिसपर बात-चीत की जानी चाहिए। मैं नहीं चाहती कि कोई भी, औरत या मर्द, सेक्स के बारे में बात करने से कतराए। मुझे उम्मीद है कि मेरा इस फ़िल्म को करना, उन्हें खुलकर सेक्स से जुड़ी समस्याओं के बारे में बात करने की हिम्मत देगा। मुझे यकीन है कि यह फिल्म लोगों को सोचने... और बात करने पर मजबूर कर देगी। बात तो करो!"

शिल्पी दासगुप्ता ने कहा, "सोनाक्षी ने इस चुनौती को अच्छी तरह से स्वीकार किया, ये एक ऐसी चीज़ है जिसके बारे में बात करने में भी लोग हिचकिचाते हैं, क़िरदार निभाना तो दूर की बात है। हमें उम्मीद है कि हम लोगों को सेक्स को एक गंदा शब्द न समझने में मदद कर पायेंगे।


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