Sunday, 2 August 2020

बॉलीवुड की फिल्मों में बहन-भाई है, पर रक्षा बंधन नहीं


कभी पारिवारिक फ़िल्में बना करती थीं। परिवार होता था।  भाई और बहन होते थे।  रक्षा बंधन होता था। नृत्य गीत होते थे। भैया मेरे राखी के राखी के बंधन को निभाना, बहना ने भाई की कलाई में प्यार बाँधा, मेरे भैया, मेरे चंदा, राखी धागों का त्यौहार जैसे रक्षा बंधन के गीत गाये जाते थे।  बहन, भाई  राखी बांधती थी। नेग पाती थी।बड़ी बहन, छोटी बहन, भाई बहन, दो बहने,  आदि टाइटल वाली फ़िल्में बना करती। नाज़, नाजिमा और फरीदा जलाल तो बहन की भूमिका के लिए सुरक्षित थी। मीना कुमार, नूतन, नंदा, आदि भी बहन बन कर सम्मान पाती।
ज़रा इन गीतों को याद कीजिये !
अब के बरस भेज भैया को बाबुल (बंदिनी), भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना (छोटी बहन), मेरे भैया मेरे चंदा (काजल), यह राखी बंधन है ऐसा (बेईमान), राखी धागों का त्यौहार (राखी), रंग बिरंगी राखी लेकर (अनपढ़), मेरी प्यारी बहनिया (सच्चा झूठा), फूलों का तारों का (हरे राम हरे कृष्णा), बहना ने भाई की कलाई से (रेशम की डोरी), बहना ओ  बहना  (शंकरा), अभी मुझमे कहीं (अग्निपथ), चंदा रे मेरे भैया से कहना (चम्बल की कसम), आदि कुछ फ़िल्मी गीतों को सुनिए।  आप बहन-भाई के प्यार में डूब जाएंगे।  यह फ़िल्में बहन के भाई के प्रति प्रेम और अनुराग का चित्रण है तो भाई के बहन के प्रति समर्पण का भी।  यह मानवीय भावना का सबसे पवित्र रूप है।  तो आज इसकी ज़रुरत क्यों नहीं महसूस की जा रही ?
बहने अब सक्षम  हैं न !
अव्वल तो आज पारिवारिक फ़िल्में नहीं बनती। जो बनती भी हैं, उनमे भाई-बहन है, पर रक्षा बंधन नहीं होता।  रक्षा  बंधन के गीत नहीं गाये जाते।  कोई अभिनेत्री हिंदुस्तानी बहन का प्रतीक नहीं समझी जाती।  क्यों ? क्योंकि कहानी का ढांचा बदल गया है। दरअसल, फिल्मकारों की दलील हैं कि अब बहन कमज़ोर नहीं रही।  रियल लाइफ बॉलीवुड में हुमा कुरैशी और ज़ोया अख्तर जैसी बहने हैं, जो अपने भाइयों के लिए फ़िल्में जुटा सकती हैं।  ज़ोया ने तो ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा और दिल धड़कने दो जैसी फिल्मों में अपने भाई फरहान अख्तर को अपने निर्देशन में नचाया है।  ऐसी बहने सक्षम।  कहा जाता है कि इन्हे भाई के रक्षा सूत्र की क्या ज़रुरत !
भाइयों की रक्षा नहीं चाहिये
कुंदन  शाह की फिल्म क्या कहना सामजिक क्रांति लाने वाली फिल्मों में शुमार की जाती है।  इस फिल्म की नायिका प्रीति ज़िंटा अपने  प्रेमी से गर्भवती हो जाती है। उसके तीन भाई हैं।  लेकिन उसे उनकी रक्षा नहीं चाहिए। वह कुंवारी माँ बनना चाहती है। भाइयौं सही पूरा परिवार उसका साथ देता है।  जोश की ऐश्वर्या राय और शाहरुख़ खान की बहन- भाई जोड़ी भी अनूठी है। भाई मवाली है।  बहन की रक्षा करने में सक्षम। लेकिन, बहन कम दबंग नहीं।  वह खुद लड़कों के कालर में हाथ डाल देती है।  कुछ ऐसी ही दशा जाने तू या जाने न, इक़बाल, धनक, काई पो चे, माय ब्रदर निखिल, बम बम बोले, भाग मिल्खा भाग, आदि फिल्मों की है। इनमे बहन सक्षम है। वह भाई को अपना लक्ष्य  पाने में  मदद कर सकती है।
भाइयों की रक्षा में सक्षम हैं
कहा जाता है कि अब रियल लाइफ की स्त्रियां सक्षम और आत्मनिर्भर हो गई है। उन्हें १९७० के दशक की फ्लिमों की बहनों की तरह गुंडों के बलात्कार का शिकार नहीं होना पड़ता कि उन्हें बदला लेने वाले भाई की ज़रुरत हो।  यानि अब महिलाये इतनी अबला नहीं रही।  फिल्म दिल धड़कन  दो में प्रियंका चोपड़ा की आयेशा मेहरा इसका प्रमाण है। आयेशा को उसका पिता कारोबार की भाईयों से अच्छी समझ रखने वाली मानता है।  इसलिए वह अपने करोबार की बागडोर बेटी को थमा देता है।  सरबजीत,  सच्ची घटना पर फिल्म है । इस फिल्म में सरबजीत की बहन (ऐश्वर्या राय बच्चन)अपने भाई (रणदीप हूडा) को पाकिस्तान की जेल से छुड़ाने के लिए आकाश पातळ एक कर देती है।  इससे पहले फिल्म फ़िज़ा की बहन भी अपने भाई की खोज में निकल पड़ती है। क्या ऐसी सक्षम बहनों को भाई की रक्षा की ज़रुरत है ?  तर्क तो यही है कि इसीलिए फिल्मों में रक्षा बंधन नहीं होता, क्योंकि बहनों को भाई की रक्षा की ज़रुरत नहीं ! परन्तु, फिल्म सरबजीत में बहन दलबीर कौर  पाकिस्तानी जेल में बंद अपने भाई को रक्षा बांधती है।
नजरिया महत्वपूर्ण
परिवार,  भाई- बहन का प्यार और रक्षा बंधन, फिल्मकार के नज़रिये पर निर्भर करता है।  सूरज बड़जात्या की फिल्मों में परिवार की अवधारणा होती है। इसलिए भाई भाई भी होते है, बहन और उनके भाई भी होते हैं। तभी तो  हम साथ साथ हैं बनाने वाले सूरज बड़जात्या की राज घराने की फिल्म प्रेम रतन धन पायो में भी सौतेले भाई का अपनी बहनों के प्रति प्रेम खास महत्व पा रहा था।  सलमान  खान की फिल्मों में भाई- बहन का कोण  देखने को मिल जाता है। प्यार किया तो डरना क्या और गर्व में बहन के रक्षक सलमान खान पिछले साल रिलीज़ फिल्म भारत में बहन की खोज में निकल पड़ते हैं। क्वीन में रानी यानि कंगना रनौत का छोटा भाई है।  पर वह भी बहन के प्रति बड़ा सजग है।  हृथिक रोशन की फिल्म अग्निपथ में बहन की एंट्री फिल्म का क्लाइमेक्स बदल देती है।




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